Unnao Rape Case: 'हम पीड़िता के प्रति जवाबदेह', सेंगर की जमानत पर रोक; CBI ने सुप्रीम कोर्ट में और क्या कहा?
Unnao Rape Case
नई दिल्ली। Unnao Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक नाबालिग लड़की के रेप केस में पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर की उम्रकैद की सजा को सस्पेंड कर दिया गया था।
हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) की याचिका पर सुनवाई करते हुए, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की तीन-जजों की वेकेशन बेंच ने कहा कि सेंगर को हिरासत से रिहा नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमें इस बात का पता है कि जब किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा किया जाता है, तो ऐसे आदेशों पर आमतौर पर इस कोर्ट द्वारा उन लोगों को सुने बिना रोक नहीं लगाई जाती है।
लेकिन खास तथ्यों को देखते हुए, जहां दोषी को एक अलग अपराध के लिए भी दोषी ठहराया गया है, हम दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हैं।'
CBI की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि यह “बेहद भयावह मामला” है, जिसमें पीड़िता की उम्र घटना के समय मात्र 15 वर्ष थी। उन्होंने बताया कि ट्रायल के दौरान IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5/6 के तहत आरोप तय हुए थे और सेंगर को दोनों मामलों में दोषी ठहराया गया है। SG ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट निष्कर्ष दिया था कि पीड़िता 16 साल से कम उम्र की थी और इसी आधार पर सजा सुनाई गई।
SG ने कोर्ट को बताया कि सजा के समय ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) के तहत दोषसिद्धि की थी, जो अपराध की तारीख पर कानून में मौजूद थी। यह बलात्कार का गंभीर (एग्रेवेटेड) रूप है, जिसमें न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है, यहां तक कि जैविक जीवन तक। उन्होंने जोर देकर कहा, “हम 15 साल की उस बच्ची के प्रति जवाबदेह हैं।” SG ने यह भी बताया कि सेंगर पीड़िता के पिता की हत्या समेत अन्य मामलों में भी दोषी है और फिलहाल जेल में है।
इस पर CJI सूर्या कांत ने सवाल किया कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में IPC के तहत हुई दोषसिद्धि पर स्पष्ट रूप से विचार क्यों नहीं किया और ऐसा प्रतीत होता है कि फैसला केवल POCSO के आधार पर किया गया। CJI ने कहा कि यह एक गंभीर कानूनी मुद्दा है, जिस पर विचार आवश्यक है।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी ने भी टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) पर विचार नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने सजा निलंबन का एक आधार यह माना कि सेंगर लोक सेवक नहीं है।
बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन और सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि आरोप IPC की धारा 376(1) के तहत तय किए गए थे और अभियुक्त को उसी आरोप का जवाब देना था। उन्होंने कहा कि किसी दंडात्मक कानून में दूसरे कानून की परिभाषा को अपने आप लागू नहीं किया जा सकता और अब यह कहना कि विधायक व्यापक अर्थ में लोक सेवक है, बहुत देर हो चुकी है। हरिहरन ने यह भी कहा कि वह पहले ही करीब 10 साल की सजा काट चुके हैं।
सुनवाई के दौरान CJI सूर्या कांत ने कहा कि मामला विचार योग्य है। सामान्य सिद्धांत यह है कि एक बार किसी को रिहा कर दिया जाए तो उसे सुना जाता है, लेकिन इस मामले में सेंगर अभी भी हिरासत में है। पीठ ने संकेत दिए कि वह दिल्ली हाईकोर्ट के सजा निलंबन और जमानत आदेश पर रोक लगा सकती है।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जारी है और अगली सुनवाई में कोर्ट इस अहम कानूनी सवाल पर विस्तृत फैसला कर सकता है